बुधवार, 5 अगस्त 2009

धर्म की धमनियों में बहता है प्रेम

सावन-भादवा पश्चिमी सीमा की इस मरुनगरी के जीवन के रंगों को पूरी तरंग से अभिव्यक्त करते हैं। देश के किसी भी कोने में रहने वाले को यदि इस शहर के बारे में जानना हो तो वह इन महीनों में बीकानेर आए, उसे शहर की तासीर पता चल जाएगी। सावन में जहां शिवालय 'हर-हर महादेवं' के तरानों से गूंजते हैं वहीं गर्मी-सर्दी के संधिकाल का यह समय मुस्लिम धर्मावलंबियों की तकरीरों को भी सही अर्थों में पहचान देता है। रात की ठंडी बयार में जयकारे व तकरीर के मिले-जुले स्वर जोश का संचार करते हैं। दोनों के स्वर मिलकर जिस नए राग को जन्म देते हैं उसे ही बीकाणा कहते हैं। धर्म की राग पूरे शहर को एक सूत्र में पिरोती है और यह साबित करती है कि वतनपरस्ती इस शहर का पहला व अनूठा गहना है। सावन अपनी यात्रा पूरी कर जब भादवे की सीढ़ी चढ़ता है तो लोक देवता बाबा रामदेव की भक्ति में पूरा शहर लीन दिखता है। इस बार तो रोजे भी इसी अवधि में आ रहे हैं। शब्बेरात की अपनी महत्ता है। सद्भाव के इस शहर को देखकर राजनीति का चोला पहनने वाले भी दंग रह जाते हैं तभी तो शायर कहता है-
शंख मंदिर में बजेगा, अजान भी होगी
ज्योति गीता की जलेगी, कुरान भी होगी

मेरे इस देश में कश्मीर से कन्याकुमारी तक

वतन की रक्षा सबका धर्म-ईमान होगी।


लो आया तबादलों का मौसम
पिछली सरकार के समय तबादलों के कारण परेशानी में आए सीएम ने इस बार अब तक शिक्षा महकमे में तबादलों की छूट नहीं दी है। सत्रारंभ के बाद भी छूट न मिलने से नेता परेशान हैं, आश्वासनों को पूरा करने की अकुलाहट है। जून से तबादलों का उद्योग पहले तो शुरु हो जाता था। लेकिन कहते हैं ना कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है, रास्ता निकल ही आता है। विभाग ने तृतीय श्रेणी शिक्षकों की डीपीसी कर द्वितीय श्रेणी शिक्षकों को पोस्टिंग दी। उसे तत्काल निरस्त कर फिर से पोस्टिंग का नाटक चला। कहने को तो यह नई पोस्टिंग है पर इसे तबादले कहें तो वह भी गलत नहीं होगा। जिनके सेवाकाल के दो साल शेष रहे हैं उनको भी दूरस्थ स्थानों पर भेजा गया है। सेवानिवृत्त को पदोन्नति दे दी गई। ऐसी विसंगतियां अनेक हैं जिनको दूर करने के तरीके विधिक तो नहीं होंगे, यह शिक्षक जानता है। शहर में तबादले हो सकें इसके लिए पद भी इस बहाने रिक्त कर लिए गए हैं। रिक्त पद यहां होंगे तभी तो तबादला उद्योग पनपेगा। शिक्षक को सात तरीके से तबादले की मार झेलनी पड़ती है, यह विडंबना है। संगठन लामबंद हो रहे हैं, समानीकरण व तबादलों के विरोध में। इस बार संघर्ष-टकराव दिखता है, सरकार पदचाप नहीं पहचानेगी तो उसे दूरगामी परिणाम भुगतने पड़ेंगे।
बैरन हो गई बिजली
शहर को ग्रहण लग गया, बिजली बैरन बन गई। शहर हो या गांव, अंधेरे का साम्राज्य हो गया। कहने को तो तीन घंटे की बिजली कटौती होती है मगर इसमें अघोषित समय जोड़ें तो यह समय दुगुने से भी अधिक हो जाता है। बिजली नहीं तो व्यवसाय बंद, खेती नहीं, पीने को पानी नहीं, मशीनें बंद। शहर की इस व्यथा से जनता परेशान है। नेता कहां है जो वोट मांगने आए, इसका जवाब किसी को नहीं मिल रहा। जब जनता ही नेता बन सड़क पर आ जाएगी तो हालात कैसे काबू आएंगे, राज-काज को सोचना चाहिए। शहर में अपराध बढ़े पर उसको लेकर भी कुछ नहीं बोले। जिनकी बात में दम होता है वे मौन साध ले तो फिर मूक लोगों की बात को स्वर कैसे मिलेगा। सरेआम लूट, चोरी, मारपीट, हत्या आदि पता नहीं इस शहर को अभी क्या-क्या देखना बाकी है। पहले जाहं गिने-चुने अपराध होते थे वहीं अब गिने-चुने दिन ही अपराध नहीं होते। इस पर शहर सोया हुआ नहीं है, कोई भूल में ना रहे। वो खुली आंखों से सब देख रहा है। समय पर जवाब भी मांगेगा, तब राज-काज का क्या होगा।

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