कौन कहता है आकाश में छेद नहीं हो सकता...
बीकानेर में हाइकोर्ट की बैंच को लेकर एक हो रहे शहर ने पुरानी यादें ताजा कर दी है। अस्मिता
के लिए सर्वस्व दांव पर लगा देने वालों के इस शहर ने एक बार फिर अंगड़ाई ली है। अपने हक के लिए समवेत स्वर से आवाज लगाई है। राजनीति,
जाति,
धर्म,
समाज,
सम्प्रदाय आदि के भेदों से परे हटकर जिस तरह से लोगों ने अपनी अस्मिता के इस संघर्ष में सहयोग का वादा किया वह यादगार था। हर क्षेत्र का व्यक्ति जोश में था और उसे लग रहा था कि उसका कुछ छीना जा रहा है। पहले शिक्षा में बीकानेर को कमजोर किया गया। रियासत विलिनीकरण के समय बीकानेर को शिक्षा की राजधानी बनाया जाना तय हुआ मगर राजनीतिक तौर पर निर्णय कर धीरे-
धीरे यहां से कई कार्यालय जयपुर या अन्यत्र स्थानान्तरित कर दिए गए। केन्द्रीय विवि को लेकर जब तक अंतिम निर्णय न हो हर किसी के मन में अकुलाहट है। हाइकोर्ट की बैंच का मुद्दा भी अब बीकानेर संभाग की नाक का सवाल बन गया है। इस हक के लिए संघर्ष के तेवर वाकई अचंभित करने वाले थे। राजनीति जब हाशिये पर जाती है तभी समाज के अन्य वर्गों को संघर्ष के लिए सड़क पर आना पड़ता है,
यह बात अनेक वक्ताओं ने कही जो सही भी थी। हाइकोर्ट की बैंच बीकानेर में आने का लाभ वकीलों को नहीं मिलेगा वरन बीकानेर,
श्रीगंगानगर,
हनुमानगढ़ व चूरू के नागरिकों को मिलेगा। यहां के लोगों को न्याय के लिए जोधपुर जाना पड़ता है उसमें समय व धन काफी खर्च होता है। यह बात समझ में आने भी लगी है। सत्ता के विकेन्द्रीकरण की बात सही है,
इसे प्रमाण की आवश्यकता नहीं रही। जब हम छोटे राज्य व जिलों की वकालत करते हैं और उसके अनुसार निर्णय भी करते हैं तो यहां विकेन्द्रीकरण से परहेज नहीं होना चाहिए। सरकार को पश्चिमी सीमा के इस संभाग की आवाज सुननी चाहिए जिसके दूरगामी लाभ मिलेंगे। बार एसोसिएशन ने पहल कर इस मांग को मजबूती दी है उसकी अगुवाई में इसका निदान कराने में हर किसी को भागीरथी सहयोग करना चाहिए। राजनीति से परे हटकर जुड़ने की बात ही नहीं हो वरन वैसा ही व्यवहार भी हो। एक गुणीजन ने बताया कि जब हम अपने इबादत स्थल पर शीश नवाने जाते हैं तो अपनी चरण पादुकाएं बाहर छोड़कर आते हैं। ठीक इसी तरह इबादत की इस मांग और उसके लिए होने वाले संघर्ष में हमें मन व भाव के साथ प्रवेश करना है,
चरण पादुकाएं बाहर आकर वापस भले ही पहन लें। यदि इस भाव से बार एसोसिएशन के इस यज्ञ में शामिल हुए तो आवाज को दबाने या बात न मानने की हिम्मत्त
शायद राज न करे।लेकिन एक बात है,
संघर्ष बीकानेर संभाग का गहना है। अनेक जन आंदोलन इसके गवाह हैं। पर हमें अब अपने स्वभाव में युग के साथ परिवर्तन भी करना होगा। केवल संघर्ष नहीं,
उसकी परिणति में अपना हक पाने की आदत भी डालनी होगी। संतोष ठीक है पर पूरा पाने पर ही संतोष करना होगा। यदि खाके-
दायरे छोड़कर सभी एक जाजम पर आए हैं तो पूरी ताकत भी दिखानी होगी। ऐसी ही एकजुटता रही तो शायद बीकानेर संभाग अपना हक लेने में सफल होगा,
उसे सम्मान
देकर हक देना होगा। सोमवार को बार की बैठक में जो लोग वादा कर रहे थे उससे एक आशा बंधी है,
बस बात सिरे चढ़ाने की है। बीकानेर की तरफ से उठी आवाज को चूरू,
श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ में भी समर्थन मिलने लगा है। इससे यह बात साबित होती है कि हरेक के मन में कशक है,
बस अंगड़ाई लेकर बात तेवर दिखाने की है। स्व.
दुष्यंत कुमार ने कहा भी है-
कौन कहता है आकाश में छेद नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो
सब आकाश मे छेद ही करने बैठे हैं, लेकिन यह पत्थर तबीयत से नहीं उछला है. बीकानेर के साथ उदयपुर और कोटा भी उच्चन्यायालय की पीठों के लिए जोर लगा रहे हैं वहीं जोधपुर रोकने के लिए। जनता का हित विकेन्द्रीकरण में है। वकीलों का हित अपने यहाँ उच्चन्यायालय की पीठ खोलने और रोकने में। समस्या है कि यह जनता का आंदोलन नहीं है। होता तो विकेन्द्रीकरण के लिए पूरा राजस्थान आंदोलित होता। जोधपुर मं बंद के दिन सुनने को मिला कि आप सारा हाईकोर्ट ले जाओ हमें मरुप्रदेश दे दो, हम हमारा हाईकोर्ट बना लेंगे। सारे आंदोलन जनता को बांटने में लगे हैं. यदि बीकानेर जिले में एक एडीजे कोर्ट जिले के दूरस्थ कस्बे में खोल दी जाए तो बीकानेर के वकील उसे रोकने के लिए आंदोलन करने लगेंगे। यह कुछ नहीं अवसरवादी सोच है। हमारे यहाँ जरूरत की 20 प्रतिशत अदालतें हैं। इन की संख्या पाँचगुना करने का आंदोलन वकील क्यों नहीं करते? देश और जनता का किसी को ध्यान नहीं है।
जवाब देंहटाएंऐसी ही एकजुटता रही तो शायद बीकानेर संभाग अपना हक लेने में सफल होगा
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