थार रेगिस्तान के इस इलाके में इंदिरा नहर जीवनदायनी बनी हुई है। सिंचाई तो दूर पीने के पानी का संकट पैदा होने की हालत बन गई है। यहां का किसान कठोर जमीन से भी अन्न उपजाता है इसलिए उसके भावों की तासीर समझनी चाहिए। पानी को लेकर उसने करवट बदली तो लेने के देने पड़ जाएंगे। राज और काज को समझ लेना चाहिए कि यहां के लोग नहीं में संतोष कर लेते हैं मगर उनके शहर की अस्मिता से छेड़खानी की जाए तो उनके गुस्से को सहन करना किसी के बस में नहीं रहता। जमीनी हकीकत को पहचान उपाय यदि समय रहते नहीं किए गए तो फ़िर हालात को संभालना मुश्किल हो जाएगा। केन्द्रीय विवि के मुद्दे पर यहां जिस तरह से लोगों ने एकजुटता दिखाई वह यहां की तासीर का नतीजा है, क्योंकि यहां मौकापरस्त लोग नहीं बसते। संवेदना के तारों से मजहब, जाति, धर्म को फांद कर अपने को जोड़े रखते हैं। ऐसी हालत में राजनीति को भी इनके सामने सरेंडर करना पड़ता है। यदि बीकानेर की अस्मिता से छेड़खानी की गई तो पूरा संभाग एक सुर में जलवे दिखाएगा, ऐसे भाव लोगों के साफ दिख रहे हैं। संघर्ष किसी का इंतजार नहीं करता, वह अविरल धारा की तरह बहता है जो इस संभाग की भी खासियत है। तभी तो दुष्यंत ने लिखा था-मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए।