गुरुवार, 11 जून 2009

अंधों के शहर में
बेचता हूँ आईना

क्या हाल पूछते हो मेरे कारोबार का
अंधों के शहर में बेचता हूँ आईना

पीबीएम अस्पताल में हुई लाइलाज बीमारी अब कैसे ठीक हो। कभी डाक्टर भड़क जाते हैं तो कभी मरीजों के परिजन अपने ज़ज्बात नही रोक पाते। पिछले एक पखवाड़े से संभाग का यह सबसे बड़ा अस्पताल हर जुबान पर चढा हुआ है। मरीज को लगी ड्रिप देखने का स्नेहिल आग्रह परिजन करते हैं तो वह सहन नहीं होता। ऐसी संवेदनहीनता गुस्सा ही बढाएगी। कहने को तो हम कह सकते हैं, थोड़ा इंतज़ार नहीं कर सकते मगर बात जंहा संवेदना व भावों की गहराई से निकली हो तो उसके मायने भी समझे जाने चाहिए। हर लफ्ज़ एक नहीं कई अर्थ रखता है, इसे न पहचानने वाला फ़िर हड़ताल जैसी गलती ही करता है। मरीज की मौत हुई फ़िर लावा फूटा। परिणाम वाही पुराना- हड़ताल। हड़तालों के कारण चिकित्सकों का भला होता होगा या फ़िर प्रभावित मरीज के परिजनों का, आम जनता को क्या मिलता है? उसे न चाहते हुए अकारण आफत झेलनी पड़ती है। उसे पता है तीन दिन तक वार्ताओं का दौर चलेगा, मान-मनुहार होगी, तब तक हमें तो भुगतना ही है। तीसरे चरण में एक नवजात की मृत्यु हुई, कारण चाहे कुछ भी रहा हो पर फ़िर अभिव्यक्ति विरोध के सुर में हुई। इस बार भले ही हड़ताल टाल दी गई हो मगर भरती मरीजों के दिल की दहशत पहले की बनिस्पत ज्यादा थी। एक पखवाड़े तक मजलूमों को अंहकार की मार सहनी पड़ी पर उसकी चीत्कार न सत्ता के कानों तक पहुँची न ब्यूरोक्रेसी तक। जनता को उसके हाल पर छोड़ दिया गया, इतना नाकारापन तो कंहीं देखने को नहीं मिलता। धन्य हैं वे चाँद राजनितिक लोग जिन्होंने जनता के दर्द को पहचाना। शीर्ष प्रतिनिधि तो मुंह में मूंग डाल कर बैठे रहे। बीमार पीबीएम को ठीक करने के लिए राज ने दवा दी पर फर्क नहीं पड़ा। जनता ने दुआ की पर उसका असर भी नही हुआ। जैसे राज भगवान के भरोसे रहता है वैसे ही बीकानेर की जनता को रहना होगा, ऐसा लगने लगा है। बिजली दो घंटे की बजाय तीन घंटे काटी जाती है पर किसी पर असर नहीं होता। किसानों को ६ के स्थान पर ३ घंटे बिजली मिलती है, उनके रहनुमाओं को इसका पता तब चलता है जब किसान ख़ुद चिल्लाता है। इन हालात के चलते अब तो हमें किसी मसीहा का इंतज़ार करना पड़ेगा। वह आएगा, सबको जगायेगा, और बताएगा कि उनके इस आलीजा शहर में कितनी रोशनियाँ डिब्बों में बंद पड़ी है, जरुरत है उन पर आए आवरण को हटाने की। वह हट गया तो शहर में आईने बेचने का कारोबार चल पड़ेगा।


1 टिप्पणी:

  1. madhuji,
    jab saare raste band ho jaate hai tab akhabaro se hi log ummid karte hai. aap ka sarthak lekhan logo ki hatasha ko wishwas me badale ka sahara banta rahe.

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