मेरे सीने में न सही तेरे सीने में ही सही....
संतोष भाव लेकर फकीराना अंदाज में उनींदे रहकर दूसरों का भला चाहने वाले इस शहर के लोगों की नींद तब उड़ती है जब कोई उनसे छेड़खानी करता है। राज से यह शहर न तो याचक बनकर मांगता है न भाग्यवादी की तरह अपने आप कुछ मिल जाने की कामना करता है। संघर्ष का इतिहास अपने सीने में समेटे यहां के लोग इसीलिए जब नींद उड़ाकर खड़े होते हैं तो अच्छे-
अच्छे धराशायी हो जाते हैं।
एक बार फिर बीकानेरियों से राज छेड़खानी कर रहा है। रियासतों के विलिनीकरण के समय यहां के शासकों ने वादा लिया था कि बीकानेर शिक्षा की राजधानी बनेगा। उस समय इसे माना भी गया। लोकशाही आते ही एक-
एककर इस शिक्षानगरी को कमजोर किया गया। संस्कृत शिक्षा,
कॉलेज शिक्षा गई अब माध्यमिक शिक्षा पर बुरी नजरें गड़ाई गई है। राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान को लेकर चल रही राजनीति ने यहां के लोगों की नींद उड़ाई है। जब स्कूली शिक्षा का मुख्यालय
बीकानेर है तो इसका मुख्यालय
जयपुर में क्यों बने।
यह बात हर नगरवासी के दिल में घर कर गई है। निदेशक ने यदि बीकानेर के बजाय जयपुर बैठने की गलती की भी
तो उन्हें अच्छे परिणाम नहीं मिलेंगे,
पहले का इतिहास देखकर समझ लेना चाहिए। यदि सरकार ने सीने में अस्मिता की रक्षा को लेकर सुलग रही चिंगारी को नजरअंदाज किया तो उसकी सेहत पर असर पड़ना तय है। निदेशालय को कमजोर करने की छेड़खानी फिर की जा रही है जिसे इस संभाग का कोई बाशिंदा सहन नहीं करेगा। यह बात यहां के राजनेता (
चाहे किसी दल के हों)
जानते हैं
इसलिए जनसुर में सुर मिला "मिले सुर मेरा तुम्हारा"
गाने लग गए हैं। इसे भांपना अब सरकार व उसकी ब्यूरोक्रेसी का धर्म बनता है ताकि निर्णय के समय गलती न हो।
थार
रेगिस्तान के इस इलाके में इंदिरा नहर जीवनदायनी बनी हुई है। सिंचाई तो दूर पीने के पानी का संकट पैदा होने की हालत बन गई है। यहां का किसान कठोर जमीन से भी अन्न उपजाता है इसलिए उसके भावों की तासीर समझनी चाहिए। पानी को लेकर उसने करवट बदली तो लेने के देने पड़ जाएंगे। राज और काज को समझ लेना चाहिए कि यहां के लोग नहीं में संतोष कर लेते हैं
मगर उनके शहर की अस्मिता
से छेड़खानी की जाए तो उनके गुस्से को सहन करना किसी के बस में नहीं रहता। जमीनी हकीकत को पहचान उपाय यदि समय रहते नहीं किए गए तो फ़िर
हालात को संभालना मुश्किल हो जाएगा। केन्द्रीय विवि के मुद्दे पर यहां जिस तरह से लोगों ने एकजुटता दिखाई वह यहां की तासीर का नतीजा है,
क्योंकि यहां मौकापरस्त लोग नहीं बसते। संवेदना के तारों से मजहब,
जाति,
धर्म को फांद कर अपने को जोड़े रखते हैं। ऐसी हालत में राजनीति को भी
इनके सामने सरेंडर करना पड़ता है। यदि बीकानेर की अस्मिता
से छेड़खानी की गई तो पूरा संभाग एक सुर में जलवे दिखाएगा,
ऐसे भाव लोगों के साफ दिख रहे हैं। संघर्ष किसी का इंतजार नहीं करता,
वह अविरल धारा की तरह बहता है जो इस संभाग की भी खासियत है। तभी तो दुष्यंत ने लिखा था-
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए।
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