बुधवार, 1 जुलाई 2009
ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के
प्रयोगधर्मिता एक अच्छी आदत है क्योकि इससे विकास की सीमाओं को विस्तार मिलता है। विज्ञान ने इस सच को साबित भी किया है। रंगमंच निर्देशक ब. व. कारंत कहा करते थे कि वो ही प्रयोग सही व उपयोगी है जो नई सोच विकसित करने में सफल हो और स्थायित्व लेने की उसमें क्षमता हो। हमारे राज व उसके अधीन के काज ने प्रयोगधर्मिता जैसे गुण वाली बात का अवलंबन तो किया मगर कारंत की बात को नजरअंदाज कर गए। उनको हर नई गलत बात पर भी प्रयोग का ठप्पा लगाने की आदत पड़ गई। शिक्षा सम्मान व संवेदना से जुड़ा विषय है पर राज-काज के भाई इसमें भी प्रयोग करने से नहीं चूके। डेढ़ दशक से अधिक समय हो गया प्रदेश में शिक्षा को प्रयोगशाला बनाए हुए। एक अकेला यह विभाग ही ऐसा होगा जहां तबादलों के एक नहीं कई तरीके है। राज्यादेश, समानीकरण, पातेय वेतन, पदोन्नति, एडहोक पदोन्नति, तदर्थ पदोन्नति, शिक्षण व्यवस्था, प्रशासनिक कारण, स्वैच्छिक, एपीओ होना सहित अनेक प्रयोग राज-काज ने तबादलों पर किए। उनके दुष्परिणाम जगजाहिर हैं पर प्रयोगधर्मिता पर बखान जारी है। आश्चर्य तो इस बात का है कि शिक्षकों की लंबरदारी करने वाले संगठन और खुद शिक्षक इसके खिलाफ झंडा बुलंद करने से कतराते हैं।शाला में प्रवेश का आरंभ मई से हो गया, सहन कर लिया। गर्मी के कारण अवकाश के स्थान पर कम समय स्कूल चलाने का फरमान आया तो भी चुप रहे। आए दिन समानीकरण की धमकी को भी चाय की चुस्कियों की तरह पी रहे हैं। बाकी बात छोडि़ए, बीकानेर संभाग से राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान को जयपुर ले जाने की बात पर भी तीखे तेवर संभाग ने नहीं दिखाए। राजनीतिक आवाज कमजोर क्या हुई अब हर कोई इस संभाग पर चाबुक चला रहा है। शायद किसी मसीहा का इंतजार हो रहा है जो आए और दर्द अपने पर लेकर सबको राहत दिला जाए। निष्ठुर राज और काज का मन तो नहीं पसीजेगा। उनको तो गुस्से की आग से पिघलना ही पड़ता है। वो गुस्सा कब आएगा, धैर्य कब टूटेगा इस पर टकटकी है।सरेआम दोपहर में लुटेरों ने लाखों की लूट कर ली पुलिस ने पुख्ता नाकाबंदी की मगर कोई पकड़ में नहीं आया। बीच बाजार चाकूबाजी, गुटों की लड़ाई हो गई पर पुलिस तो सूचना देने के बाद आई। पता नहीं महकमे की मोबाइल टीमें कहां गई, मोटर साइकिलें लेकर वे टीमें कहां घूमती हैं। धार्मिक-सांस्कृतिक इस नगरी को छोटी काशी का नाम देने वालों को अब लोग झूठा साबित करने में लगे हैं। अवैध शराब पकड़ी जा रही है मतलब बिकती तो है ही। इतनी घटनाओं के बाद भी राजनीतिक हलके की चुप्पी सोचने को मजबूर करती है। इन सब पर यदि पुलिस ने जनता से अपने स्तर पर मिलकर प्रयास नहीं किए तो संस्कृति की जगह नए रिकार्ड बन जाएंगे जो शर्मसार करने वाले होंगे। इन सबका निदान समूह में निहित है, समूह परेशान और बेचैन भी है। पर इसे राज व काज वाले पढ़ नहीं पा रहे रहे हैं, जो उनकी सेहत के लिए अच्छी बात तो नहीं मानी जा सकती। उनको शायद ये पंक्तियां याद नहीं है- ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के...
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प्रशंसनीय है यह प्रयास।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }