स्वागत है ऋतुराज आज थारौ स्वागत है जैसे गीतों से मानसून और सावन की मनुहार करने वाली इस सांस्कृतिक नगरी में मेहमान को भगवान मानने की परंपरा आज भी शाश्वत है। कई बार भीषण गर्मी के कारण लोग कैसे सावन बीकानेर जैसे सवाल भी प्रकृति से विपरीत जाकर खड़े कर देते हैं। इस शहर में बमभोले के मंदिरों की संख्या अनगिनत है तो बीकानेर में सावन की महिमा अपार होनी ही है। ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्त्व की इस नगरी में तालाब-तलैया भी बहुत हैं। बीकानेर में सागर, शिवबाड़ी, संसोलाव, हर्षोलाव, नाल, कोडमदेसर आदि के तालाब ऐसे हैं जहां न केवल फ्री स्टाइल की तैराकी होती है अपितु गोठों-पूजा के दौर भी चलते हैं। भू-माफियाओं ने सरकारी जमीन पर कब्जे किए। संरक्षण पा लेने के कारण उनको तोड़ा भी नहीं गया, अवैध बजरी खनन भी तालाबों के पास अधिक हुआ और होता है। इन सबने तालाबों की आगोर को तो लीला ही वरन् इनकी सुंदरता को भी नष्ट कर दिया। तालाब जहां मनोरंजन के साधन हैं वहीं अब मौत के कारण भी बनने लगे हैं। इन तालाबों पर हर उम्र के लोग, खासकर किशोर-युवा अधिक संख्या में जाते हैं। दुर्भाग्य है कि संभागीय मुख्यालय होने के बाद भी यहां किसी तालाब पर प्रशासन ने प्रशिक्षक या गोताखोरों को तैनात नहीं किया हुआ है जिसके कारण हर सावन में तालाब भरने के बाद दुखद हादसे होते हैं। एक दशक में तालाबों में डूबने से हुई मौतों की गणना की जाए तो हर समझदार को शर्मसार होना पड़ेगा। शहर बमभोले का है, यहां के लोग भी भोले हैं इसलिए प्रशासनिक लापरवाही का विरोध नहीं हुआ। नगर निगम है, नगर विकास न्यास है और जिला प्रशासन है। किसी की तरफ से इस बार भी पहल नहीं हो पा रही। यदि आने वाले दिनों में कोई हादसा हुआ तो इन दोनों को तीखे विरोध का सामना करना पड़ेगा। शहर के तेवर तीखे हैं। अगर डूबने से अकाल जान गई तो हाहाकर मचेगा, फिर न जन-आक्रोश से प्रशासन बचेगा न पुलिस। न नगर निगम, न नगर विकास न्यास और न जन प्रतिनिधि बचेंगे। आग लगने के बाद यदि कुआं खोदने की कोशिश हुई तो देर हो जाएगी, विरोध सहन नहीं होगा राज और काज को।
राजनीति वाकई शह और मात का खेल है। होलसेल भंडार में चुनाव को लेकर चली चालें हर किसी को हैरत में डाले हुए हैं। कौन किसका समर्थन कर रहा है और कौन विरोध, समझ में ही नहीं आ रहा। एक ही टीम के खिलाड़ी आमने-सामने दिख रहे हैं तो कभी विरोधी टीम के साथ भी कुछ खड़े दिख जाते हैं। इस शह और मात के खेल में सहकारिता की मूल भावना गुम हो रही है, इसकी न सरकार को चिंता है और न ही आला अधिकारियों को।शुद्ध के लिए युद्ध अभियान चल रहा है, सरकार भी खुश है और सरकारी महकमे भी। सरेआम लोग अभियान की कार्रवाई से पहले दुकानें बंद कर लेते हैं। ये समझने के लिए क्या काफी नहीं है कि मिलावट कहां है। इन सबके बाद भी सरकारी अमला बंद दुकानें देखकर कहीं ओर चल देता है। वाह रे शुद्ध के खिलाफ युद्ध, अभियान चलाने वालों की शुद्धता भी परखी जानी चाहिए। शहर अब नए सोच के साथ तेवर ले रहा है इसे नहीं पहचाना तो नए रंग सामने आने लगेंगे। कबीर ने कहा भी है- जाति न पूछो साधु की पूछि लीजिए ज्ञान, मोल करो तलवार का पड़ा रहन दो म्यान।
गुरुवार, 16 जुलाई 2009
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madhu ji aapro bhasker me jiko janranjan chhap riya ho unne the rajasthani bhasha ne chhapo to thari maang jyada huveli ar ganganagar me jiko lekh rajasthani me chhpe unne the bhi rajasthani me chaapo. insu aapni rajasthani ne moklo sable milela media su mhane ass h
जवाब देंहटाएंthe rajasthani saru aage aavo sa.