सांईं ते सब होत हैं बंदे से कुछ नाहीं
हरबार की तरह इसबार भी आंधी-तूफ़ान और बरसात आने पर नुकसान हुआ, जनजीवन पर असर पड़ा। कुछ नही बदला, बदली है तो लोगों की पीड़ा क्योंकि वह ज्यादा गहरा गई है है। उसी तरह बिजली के खम्भे गिर रहे हैं और बिजली बंद हो रही है, पीने का पानी नही मिल रहा है। लोग शोर मचा रहे हैं और अधिकारी केवल आश्वासनों की चाशनी चटा रहे हैं। सब कुछ वर्षों से चल रहा है। एक ही रोग वर्षों से चल रहा है और उसके डाक्टर भी उपचार कर रहे हैं, बचाव नहीं।
लोकशाही में विचार और सरकार के बीच समता ढूंढने लगें तो शायद अपना पूरा जीवन खपा देने के बाद भी हम छोर नहीं पा सकते। राजनीति में विचार केवल कहने व बोलने की चीज है और सत्ता भोगने, इस विसंगति में यदि सरकार किसी अलौकिक शक्ति के सहारे चलने की बात कही और मानी जाए तो शायद गलत नहीं होगी। एक सरकार ने चुंगी खत्म की और भरपाई राज के खजाने से करने की बात कही। दूसरी सरकार ने बात तो यही मानी पर भरपाई को लीर-लीर कर दिया। इसके चलते प्रदेश के स्थानीय निकाय बुरी हालत में पहुंच गए। निगमों की हालत तो और भी खराब हो गई। बीकानेर संभाग के एकमात्र निगम का खेवनहार ' सांईं´ के अलावा कोई नही है। जबसे यह परिषद नगर निगम के रूप में बदली तब से यहां की आर्थिक दशा गरीब के चीर की तरह है। आधारभूत सुविधाओं का जिम्मा तो इस निकाय के पास है पर उसके लिए साधन के नाम पर केवल राम का नाम है। सभापति मेयर बनकर खुश हैं तो पार्षद कोरपरेटर बनकर इतरा रहे हैं। एक बार भी इन लोगों ने दलीय सीमाओं को तोड़कर निकाय की माली हालत सुधारने के लिए संयुक्त प्रयास नहीं किया। स्थानीय निकायों में जनता के भेजे जनप्रतिनिधियों की अपनी मजबूत सरकार होनी चाहिए मगर ये खुद ही सरकार के भरोसे हो गए हैं, उसके मोहताज हो गए हैं। कर लगाने से डरते हैं क्योंकि इससे अगली बार उनकी जीत खतरे में पड़ सकती है। सरकार के खिलाफ बोलने से डरते हैं क्योंकि नुकसान का अंदेशा रहता है। अब न तो पूरी बिजली मिल रही है और न ही शहर साफ हो रहा है। सड़क-नाली बननी बंद हो गई और जो बनी उनकी कीमत निगम अदा नहीं कर रहा। जब पता चल जाए कि दाता दिवालिया है तो श्रद्धालु भी अपने पांव दूसरी तरफ मोड़ लेता है। निर्माण करने वाले लोग निर्माण का आदेश लेने से भी कतराने लगे हैं। निगम के खेवनहार हैं कि अगले चुनावों को देखते हुए बिना पैसे निर्माण की पेशकश करते जा रहे हैं। अब इस हालत में पिछली सरकार की मुखिया की तरह यहां के मुखिया भी कहे कि सब कुछ भगवान भरोसे है तो शायद गलत नहीं है। निगम तो अब वाकई ऐसे ही भरोसे है। अब देखना है कि भारोसेवाला भी सरकार की तरह बनता है या भावों के भोग से पसीजता। व्यास समिति ने बीकानेर के लिए केन्द्रीय विवि की सिफारिश कर दी तो नागरिकों का हर वर्ग एकता के साथ एक झंडे के नीचे आ गया और नगर की शान बढ़ाई।सरकार है कि अब इसमें राजनीति का घुन लगने की प्रतीक्षा कर रही है ताकि उसको भी अपनी रंगत दिखाने का मौका मिले। बीकानेर एक बार फिर नई अंगड़ाई लेता दिख रहा है। वो राज-काज की तरह अपने को भगवान भरोसे छोड़ने के मूड में नहीं है। यदि उसके मन को भांपने में लंबरदार लोग चूके तो लोकशाही में उनकी चूक निश्चित हो जाएगी। सांई के बंदे इस बार कुछ अलग ही मूड मे हैं। 'सांई ते सब होत हैं बंदे से कुछ नाहिं, राई से पर्वत करे पर्वत राई माहिं´।
बुधवार, 17 जून 2009
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madhuji,
जवाब देंहटाएंaapne jis mudde ko uthaya hai ise abhiyan ke roop me niymit chalaya ja sakta hai. ho sakta hai janpratinidhiyo ki khumari toot jaye aur aap ke abhiyan se bikaner ka kuch bhala ho jaye.
.....kirti rana