बुधवार, 22 जुलाई 2009

दिल का मरहम ना मिला जो मिला सो गर्जी...

छोटी काशी के रूप में पहचाने जाने वाले इस नगर में हदें पार करती हैं तभी शोर उठता है नहीं तो एक संतोष का सन्नाटा यहां पसरा रहता है। सन्नाटे की इस हद पर राज लगातार टंकारे से चोट कर रहा है। दिन में तीन घंटे की घोषित और कई इलाकों में इतनी ही अघोषित बिजली काटी जा रही है। जाहिर है उसका असर पीने के पानी पर भी है। शहर का चार सदस्यों वाला एक छोटा परिवार भी पैसे देकर पानी का टैंकर मंगाने को मजबूर है। गांव में गरीब ही नहीं किसान भी पानी-बिजली से त्राहिमाम है। विधानसभा में 'एट पीएम', बलात्कार, सदस्य की गरिमा, सफाई, आठवीं बोर्ड जैसे मुद्दे तो उठने चाहिए वे उठ रहे हैं। सात विधायक व एक सांसद है। उनको पानी-बिजली पर भी कुछ अलग करना होगा नहीं तो यहां के लोग श्रीगंगानगर की तरह सड़कों पर उतरने लग जाएंगे। शहर में चोरी, चेन छीनना व दुर्घटनाओं का अंबार सा लगने लगा है इस पर भी तो आवाज उठनी चाहिए। इनका हल नहीं निकला तो हालात कितने गंभीर होंगे यह शहरवासी अब महसूस करने लगे हैं। इतनी सारी चीजों से यहां के लोग अब सताए लगते हैं इस हालत में वे हद तोड़ें तो शायद उसको संभालना मुश्किल हो जाएगा।
दुर्बल को सताइए जाकि मोटी हाय
बिना जीव की हाय से लोहा भस्म हो जाय
छंट गया अंधेरा, हमेशा सा था सवेरा
इस बार कहते हैं सदी का सबसे बड़ा सूर्य ग्रहण था। कौमी एकता की इस नगरी में हर धर्म संयम और धैर्य सिखाता है। ग्रहण के अंधविश्वासों को लेकर हर जगह भय का माहौल बना। पर खुशी है इस नगरी को भय छू भी नहीं पाया। धर्म की जड़ें गहरी है तो उसका तात्विक ज्ञान भी यहां की खासियत है। पोथी पढ़ने से यह ज्ञान नहीं आता। यहाँ तो ज्ञान संस्कारों की सरस सरिता से बहकर हर किसी के कानों में पहुंचता है और उसके विवेक का हिस्सा बन जाता है। ग्रहण आया, सब ने प्रार्थना-इबादत की और अंधेरा छंटते ही अपने रोजमर्रा की जिंदगी में व्यस्त हो गए। कहां गया भय, कौन था भयातुर, किसको हुई शंका- कोई तो आकर बताए। इस शहर ने हमेशा ही बड़े झूठ को नकारा है और उसको पस्त किया है। ग्रहण की शंकाओं पर किसी से बात करते हैं तो वो कहता है-
आया था किस काम को तुं सोया चादर तान
सूरत संभाल गाफिल अपना आप पहचान
शान्ति की चादर को संभालें
शान्ति का गहना पहनने वाले इस शहर के लोग पिछले तीन माह से परेशान हैं। कभी दिन दहाड़े लाखों लूट लिए जाते हैं तो कभी चलती महिलाओं का मंगल सूत्र या चेन छीन ली जाती है। पिछले दिनों में हुई आधा दर्जन चोरियां दिन-दहाड़े हुई है। इन करतूतों को अंजाम देने वाले अभी तक पकड़ से बाहर हैं। जनता का गुस्सा बढ़ता जा रहा है। धन, मन चोरी होने या लुटने के साथ विश्वास भी लुटता जा रहा है जिसने आदमी को तोड़ दिया है। पुलिस अपने तरीके से काम कर रही है पर वह पर्याप्त नहीं है। बात काम करने या गश्त बढ़ा देने की नहीं है, जनता का खोया विश्वास लाने की है। शहर के टाइगर रात को हाइवे तक संभालते हैं तो क्या उनके थानों के प्रभारी अपना हलका नहीं संभाल सकते। चलो घटना हो गई पर क्या छोटे से इलाके से अपराधी को नहीं पकड़ सकते। यदि वर्तमान व्यवस्था नाकाफी है तो उसमें बदलाव भी तो उनको ही करना है। साधन सीमित हैं तो जनता से सहयोग तो उनको ही लेना है। हालात यही रहे तो अपराधों का ग्राफ शहर की सूरत और सीरत दोनों बदल देगा जिसके लिए फिर जवाबदेही भी तय होने लगेगी। अभी तो समय है नहीं तो यह समस्या इतनी बड़ी हो जाएगी कि उस पर पार पाना कठिन हो जाएगा। कबीर ने कहा भी है-
दिल का मरहम ना मिला जो मिला सो गर्जी
कह
कबीर आसमान फटा क्योंकर सीवें दर्जी

3 टिप्‍पणियां:

  1. विचारणीय आलेख!!!


    दिल का मरहम ना मिला जो मिला सो गर्जी
    कह कबीर आसमान फटा क्योंकर सीवें दर्जी


    -सही फिट बैठता है यहाँ.

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  2. समस्‍या छोटी हो तभी उपाय निकालना अच्‍छा होता है .. पर आज तो मुद्दे के गंभीर हुए बिना लोग ध्‍यान ही नहीं देते !!

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  3. madhuji,
    log bhle hi jaag rahe ho lekin lagta hai jnprtinidhi chadar odh kar so gaye hai, ho sakta hai aap ki kalam ki chubhan se jag jaye.

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