बुधवार, 16 दिसंबर 2009

नाव जर्जर ही सही लहरों से टकराती तो है...
बीकानेर एक बार फिर टकटकी लगाए केन्द्र व राज्य सरकार की तरफ देख रहा है। समान सरकारों के कारण इस राज्य में आईआईटी, आईआईएम, केन्द्रीय विवि खुलने की पहल हुई। राज्य सरकार ने विजय शंकर व्यास समिति का गठन कर इनके स्थान तय करने का जिम्मा सौंपा। समिति ने अपनी रिपोर्ट बनाई और सरकार को दे दी। चार संस्थानों की सिफारिश थी जिसमें एक संस्थान केन्द्रीय विवि बीकानेर में खोलने का सुझाव दिया गया। बस, तब से यहां के लोग टकटकी लगाए सिफारिश पर घोषणा का इंतजार कर रहे हैं। राजनीतिक हदबंदी तोड़कर लोग एक मंच पर आए तो आस बंधी पर अब उस पर धुंधलका छाने लगा है। अपने आप में यह आश्चर्यजनक तथ्य है कि व्यास समिति की चार में से दो सिफारिशे एज-इट-इज लागू कर दी गई। बीकानेर में केन्द्रीय विवि खोलने पर संशय बन गया। कहां चूक रही, किसके कारण रही और क्यों रही, यह जानने को यहां के लोग आतुर हैं। लोगों की आतुरता उनकी जागरूकता को अभिव्यक्त कर रही है। हर किसी के दिल में एक ही सवाल है, बीकानेर संभाग के साथ हर बार ऐसा क्यूं होता है। लोगों के भावों को पढ़ा जाए तो पता चलेगा कि केन्द्रीय विवि की बात अब संभाग वासियों की अस्मिता से जुड़ गई है। यदि उस पर आंच आई तो शायद संभाग में एक बड़े आंदोलन की नींव पड़ेगी, जिस पर बाद में नियंत्रण राज के लिए आसान नहीं होगा। यदि समय रहते बीकानेर की अस्मिता से जुड़े इस मुद्दे पर सकारात्मक निर्णय नहीं हुआ तो राज और काज के सामने बड़ी चुनौती खड़ी होनी तय है। इसके लिए अंदरखाने आंदोलन की भावभूमि भी बनने लगी है जिसका अंदाजा बहुत से लोगों को नहीं है।
पैरवी करने वालों को पैरोकार का इंतजार
न्याय के लिए लोगों की पैरवी करने वाले वकील हाइकोर्ट की बैंच चाहते हैं जिसमें उनका नहीं आम जनता का भला है। बीकानेर संभाग के सभी जिलों के लोगों को राहत मिलेगी। सस्ता न्याय समय पर व सहजता से मिलेगा। इस मांग को नाजायज तो नहीं कहा जा सकता। नेताओं से लेकर सभी तरह के सार्वजनिक लोगों की पैरवी करने वाले अधिवक्ता इतने लंबे असेü से कचहरी में धरना लगाए बैठे हैं पर उनकी दमदार पैरवी करने वाले सामने नहीं आ रहे। दबी जुबान में समर्थन हो रहा है पर बात आगे नहीं बढ़ रही। आम जनता का साथ है यह सभी जानते है, मांग जायज है इसे मानते हैं पर फिर भी सरकारें खामोश है। चाहे केन्द्र की सरकार हो या राज्य की, पैरवी करने वालों की पैरवी को आगे नहीं आ रही। बीकानेर जैसे शांत शहर में इतना बड़ा व लंबा आंदोलन फिर भी बेरुखी, ये पçब्लक है ये सब जानती है। इसके दूरगामी परिणाम सरकारों को भुगतने पड़ेंगे। जन प्रतिनिधियों ने यदि अब पहल नहीं की तो जनता उनसे भी सवाल करेगी। पीड़ की परीक्षा राज-काज को लाभ तो कभी नहीं दे सकती।
अब तो उतरने दो मैदान में
छात्र संघ चुनावों को लेकर एक बार फिर हलचल तेज हुई है। युवा तरुणाई के राजनीति में सितारे बुलंदी पर आने से छात्र नेताओं में ज्यादा अकुलाहट है जो स्वाभाविक भी है। यदि राजनीति के इस पहले ककहरे से शुरुआत हो तो भविष्य सुंदर रहता है। छात्र हक के लिए चुनावों की मांग भी करने लगे हैं हालांकि अब सत्र का बहुत कम समय शेष रहा है। सरकार को चार साल से रुकी छात्र संघ चुनाव प्रक्रिया पर कोई ठोस निर्णय तो करना ही चाहिए क्योंकि इसी पर प्रदेश की भावी राजनीति टिकती है। क्योंकि स्व. दुष्यंत ने कहा भी है-
इस नदी की धार से ठंडी हवा आती तो है, नाव जर्जर ही सही लहरों से टकराती तो है।

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