गुरुवार, 20 अगस्त 2009

मैं एक समस्या अनेक


गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं

बलिहारी गुरू आपकी गोविंद दियो बताय

इस परंपरा को जीवन का हिस्सा बनाने वाले पसोपेश में है, गुरु को अब बड़ा कैसे माने। राज और काज ने गोविंद से बड़े गुरु को अब बेचारा बना दिया है। न उसका स्थान निश्चित रहा न काम, न विश्वास कायम रहा ना दाम। एक ही जैसा काम करने के बाद भी उसे अलग-अलग दाम मिलते हैं। विद्यार्थी मित्र, शिक्षाकर्मी, संविदा शिक्षक, पंचायत राज शिक्षक- पता नहीं शिक्षक के कितने प्रकार हो गए। हर एक अलग ओहदा, अलग काम और अलग दाम। आश्चर्य तो यह है कि समाज राज के इस बुरे व्यवहार को सहन कर रहा है, शिक्षक भी मजबूर है क्योंकि उसे पेट भरना है। शिक्षक के पास अब काम भी केवल पढ़ाने का नहीं रहा। पशुओं की उसे गणना करनी पड़ती है, मतदाता सूची बनानी पड़ती है, पोषाहार पकाना पड़ता है, स्कूल निर्माण कराना पड़ता है, सरकारी आदेशों की पालना में विभिन्न अवसरों पर रैली निकालनी पड़ती है। जनसंख्या वह गिने, चुनाव वह कराए, अकाल राहत कार्यों पर नजर रखे। कोई भी काम हो तो पहले पहल शिक्षक का नाम सरकार लेती है। जितने काम हैं उतने उसके तबादले के तरीके हैं, ऐसे तरीके देश में राजस्थान के अलावा किसी भी प्रदेश में नहीं है।समानीकरण, पातेय वेतन पदोन्नति, एडहोक पदोन्नति, राज्यादेश, वाइसवरसा, राज्य की इच्छा पर, न्यून परिणाम रहने पर, शिक्षण व्यवस्था आदि तरीकों से यहां शिक्षक का तबादला किया जाता है। इसी कारण प्रदेश की शिक्षा प्रयोगशाला बनी हुई है पर ऋणात्मक पहलू है कि प्रयोग नेता कर रहे हैं, परिणाम की कल्पना की जा सकती है। इन दिनों समानीकरण का फंडा चल रहा है। सैकंडरी स्कूल में पांच कक्षाएं तो पांच ही शिक्षक, कोई बताए कि छह विषय पांच शिक्षक कैसे पढ़ाएंगे। प्रशासन कौन चलाएगा, खेल गतिविधियां कौन संचालित करेगा। समानीकरण तब किया जाता है जब कक्षाओं के अनुसार शिक्षकों के पद हों और उससे अधिक शिक्षक स्कूल में हो। प्रदेश की एक भी ऐसी स्कूल नहीं जहां नार्म्स अनुसार शिक्षक पद हों। इसके बावजूद समानीकरण करने का डंडा चलाया जा रहा है। जाहिर है स्कूलों की शिक्षण व्यवस्था चौपट होगी ही, शिक्षक प्रताड़ित होकर संघर्ष की राह दौड़ेगा। राज-काज को यह समझ नहीं आ रहा क्योंकि उसका नुकसान आम आदमी को होगा, उसके बच्चों की पढ़ाई चौपट होगी। शिक्षक लामबंद हो रहे हैं, यदि राज तक विभाग ने यह बात नहीं पहुंचाई तो उसे लेने के देने पड़ेंगे।

कई हैं गुदड़ी के लाल

सांस्कृतिक नगरी बीकानेर ने इस बार चार दशक से नाट्यकर्म कर रहे डॉ. राजानंद भटनागर का सम्मान किया। दो दिन उनके रंगकर्म पर विचार किया। जोधपुर से आए मदन मोहन माथुर ने जब उनके नाटकों का बड़ा आयाम बताया तो आम दर्शक तो दूर रंगकर्मी भी अचंभित रह गए। माथुर के पत्र वाचन से यह निष्कर्ष निकला कि बीकानेर का रंगकर्म राष्ट्रीय फलक पर अपनी बड़ी पहचान लिए हुए है। इस नगरी में कई गुदड़ी के लाल हैं। डॉ. नंदकिशोर आचार्य को दो दिन सुनना यहां के सृजनधर्मियों व रंग प्रेमियों के लिए सुखद रहा। उन्होंने प्रयोग को नए अर्थों में परिभाषित कर रंगकर्म को एक नई दृष्टि दी है जिस पर आने वाले कई नाटकों की दिशा तय होनी निश्चित है। समवेत ने एक शानदार प्रयास किया जिससे नगर की साहित्यिक गतिविधियों को नया आयाम मिला।

अब तो ध्यान धरो प्रभु

बिजली की कटौती को लेकर अब तो हर कोई आजिज है। एक से चार घंटे तक की घोषित व दो घंटे की अघोषित कटौती ने लोगों की दिनचर्या को पूरी तरह छिन्न-भिन्न कर दिया है। न दिन को चैन न रात को आराम। सरकार है कि बिजली कटौती बंद करने या अवधि कम करने के बजाय बढ़ाने में लगी है। ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ। बुजुर्ग रामलालजी कहते हैं कि इतने लंबे समय तक इतने समय की बिजली कटौती तो पहले कभी नहीं हुई। लोगों ने बिजली महकमे के अभियंताओं को घेरा, जाम लगाए, प्रदर्शन किए पर पार नहीं पड़ी। हारकर चुप हो गए, अब तो प्रभु से ही अरदास कर रहे हैं। हे प्रभु, अब तो ध्यान धरो। ऐसे हालात राज और काज के लिए अच्छे तो नहीं माने जा सकते। यदि यही हालत रही तो ढेर के नीचे सुलग रही चिंगारी कोई बड़ा आंदोलन खड़ा कर देगी।

1 टिप्पणी:

  1. madhu ji,
    aapka yeh blog bahut hi achchha hain. mere dil ke bahut kareeb hain aapka yeh blog.

    bijli ki katauti se har aadmi halkaan hain. yeh mahaj ek sanyog hain ya sachchaai??, ki-"pichhli baar bhi gehlot ji hi c.m. thae or ab is baar bhi gehlot ji hi c.m. hain."

    beech main jab vasundhara ji c.m. thi, to bijli ki problems maamuli (naa ke baraabar) thi.

    main aapse maafi chaahta hoon. agar aap bura naa maano to ek baat kahu??-"mujhe aapka pichhlaa (isse pehle waala) blog kuch vishesh pasand nahi aayaa hain."
    thanks.

    CHANDER KUMAR SONI,
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