बुधवार, 12 अगस्त 2009

प्यासे होंठ पर बैठा हुआ क्यों फासला है...

एक पखवाड़े से बीकानेर शहर उसके गांव बिजली के लिए काम-काज छोड़कर सड़क पर हैं। भी गांव के सब स्टेशन पर घेराव होता है तो कभी सड़क पर जाम। बुधवार को तो गांव से आए लोगों ने 220 केवी सब स्टेशन पर ही धावा बोल शहर की बिजली भी कटवा दी। बिजली मिलने से जिंदगी सुस्ताई हुई है तो व्यापार-उद्योग भी मंदा पड़ गया है। गांवों की हालत बदतर है, सिंचाई के अलावा पीने के पानी का जुगाड़ भी नहीं हो रहा। शहर गुस्से में आया तो पता चला कि गांव वालों ने जबरन शहर की बिजली भी बंद कराई है। यहां किसने किसकी बिजली बंद कराई ये बात बड़ी नहीं है बात तो यह है कि किस कारण ऐसा हुआ। बिजली ने करंट शहर गांव, दोनों को दिया है। पैसा देकर बिजली खरीदते हैं मगर वो भी मिलती है उनकी मर्जी से। सरकार जितनी बिजली देगी निगम भी उतनी ही बांटेगा। सरकार मौन रहकर तमाशा देख रही है और मुकाबला शहर-गांव, जनता-निगम कर्मचारी कर रहे हैं। हालात बेकाबू हैं पता नहीं सरकार के कानों तक कारिंदों ने संदेश पहुंचाया भी है या नहीं। बर्बाद होती फसल शहरी जिंदगी की दशा पर कोई पहल नहीं हो रही, ना राज से ना काज से। बुजुर्ग बताते हैं पहली बार ऐसा हुआ है जब इतनी लंबी अवधि तक इतनी लंबी बिजली कटौती झेलनी पड़ रही है। बीकानेर अब बिजली को लेकर आक्रोशित है उनके भीतर संघर्ष की ज्वाला धधक रही है। किसी ने भी इस चिंगारी को हवा की राह पर धकेल दिया तो रोष थामे नहीं थमेगा। मुझे डॉ रामसनेहीलाल शर्मा की पंक्तियां याद रही है-

रेत के इस सिंधु में ही तो कहीं मीठा कुआं है,

किन्तु प्यासे होंठ पर बैठा हुआ क्यों फासला है,

मौन की चादर बिछाए दर्द का ओढ़े कफन,

आदमी के वेश में सोया हुआ इक जलजला है।


मुंह के सामने से छिन रहा है निवाला

सरकार की बनाई प्रो. वी एस व्यास समिति ने बीकानेर में केन्दीय विवि बनाने की सिफारिश सरकार को सौंपी मगर अब बीकानेर के मुंह के सामने से उसका निवाला छीनने की पूरी तैयारी है। राजनीतिक शून्यता के चलते इस शहर ने कई बार मार खाई है मगर इस बार की मार आने वाली पीढ़ियों को दर्द देगी। बीकानेर से इस संस्थान को अन्यत्र ले जाने की कोशिशों की सूचना मिली तो लोगों को अचंभा हुआ। बात निकली तो दूर तलक जाना तय था विरोध की कोशिशे हुई पर कई सूरमा उस अभियान से नदारद दिखे। दर्द किसी के दिल में शायद कम नहीं होगा मगर यह तय है कि जिस जलजले की तरह शहर को तेवर दिखाने चाहिए थे वैसे नहीं दिखाए गए। संघर्षों में पलकर बड़े हुए इस शहर के साथ इतनी बड़ी नाइंसाफी यदि बर्दाश्त कर ली गई तो बीकानेर के इतिहास पर सवालिया निशान लगेंगे। इस शहर ने हर नाइंसाफी के खिलाफ आवाज बुलंद की है। गेहूं निकासी आंदोलन ने तो पूरे राज्य को दिशा दी थी। सरकार यदि सोचती है कि इस सांस्कृतिक नगरी के बाशिंदों को केवल सृजन में विश्वास है तो वो भूल कर रही है, संघर्ष तो यहां के हर कण में रचा-बसा है। पश्चिमी सीमा की इस धरा ने आंदोलन का इतिहास गढ़ा है। संघर्ष की हुंकार भर दी गई है अब तो कारवां जुड़ता रहेगा, जिसे राज-काज ने भांपा तो परेशानी में पड़ जाएंगे। हरीश भादानी ने कहा भी है- जो पहले अपना घर फूंके,
धर मजलां फिर चलना चाहे,
उसको
जनपथ की मनुहारें।

1 टिप्पणी:

  1. madhu ji,
    main aapke vichaaro se purntayaa sehmat hoon. visheshkar bijli ke ghor-sankat par main aapke vichaaro se sehmat hoon.
    aapne aam-jan ki aawaaz ko high-light kiya hain. sarkar jiski bhi ho, jaisi bhi ho, aam aadmi ki jaroorto ko puraa karna uska farz hain.
    aam-jan ko aankade bataane ki koi aawashyakta nahi hain, yeh sab bhole-bhaali janta ko aankado ke makad-jaal main uljhaane se jyaada kucch nahi hain.
    isliye sarkar to bijli ki samasyaa ka turant samaadhaan karna chaahiye.
    thanks.

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