गुरुवार, 25 मार्च 2010

दो दिन मेरे शहर में ठहर कर तो देखो...
धर्म धरा बीकानेर को छोटी काशी इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां हर किसी के दिल में संवेदनाओं का संसार बसा है। मानव या किसी भी जीव के प्रति प्रेम का सागर हिलोरे लेता रहता है। ऐसी धरा पर यदि मानव जीवन के मोल को नजरअंदाज किया जाए तो बात चिंता की है। जीवन के मोल को आदि से अब तक कभी तोला नहीं जा सका है उसे तो केवल महसूस किया जा सकता है। बीकानेर की बजरी का कोई मुकाबला नहीं और इससे अनेकों का पेट भी पलता है। शहर ने विस्तार लिया तो बजरी की खानें रिहायशी इलाकों के बीच आ गई। खनन भी इतना हो गया कि अब खानें भयावह हो गई है। शहर के लोग और जन प्रतिनिधि इस समस्या को अनेक बार उठा चुके हैं और जन हित के वाद भी सम्माननीय न्यायालयों में दायर हुए हैं। राजस्थान की बड़ी पंचायत विधानसभा में भी यह मसला गूंजा है।
आला अधिकारियों और खान विभाग को चाहिए कि इस समस्या से निजात दिलाए तथा जिन लोगों की इससे रोटी-रोजी जुड़ी है उनका भी प्रबंध करें। वैकल्पिक प्रबंध से किसी का नुकसान नहीं होगा और मानव जीवन भी रक्षित होगा। इस समस्या से निजात अब पहली आवश्यकता बना हुआ है जिसे अधिक नजरअंदाज किया गया तो परिणाम बुरे निकलेंगे। अवैध बजरी खनन की समस्या से अब शहर को छुटकारा मिलना चाहिए। वैकल्पिक प्रबंध इसलिए हो ताकि जान जोखिम में डालकर न तो कोई खनन करे और संभावित मानवीय क्षति भी रुके।
भगवान भरोसे ना रहे ट्रैफिक
बीकानेर के बारे में मशहूर है कि यहां का यातायात भगवान भरोसे चलता है। कुछ कमी प्रबंधन की है तो कुछ लोगों की फितरत आड़े आती है। ऐसा नहीं है कि पुलिस ने इसको सुधारने के कभी प्रयास नहीं किए। प्रयास कुछ तो आधे अधूरे रहे और कुछ लोगों का सहयोग नहीं मिला। नफरी भी इतनी कम है कि लोगों पर रोकटोक नहीं लग पाती। बीकानेर पश्चिम के विधायक ने विधानसभा में यहां यातायात पुलिस अधीक्षक की मांग उठाकर दुखती रग पर हाथ रखा है। यदि यह पद यहां होगा तो जाहिर है नफरी की भी कमी नहीं रहेगी। इस मायने में मांग वाजिब है। आए दिन होने वाली दुर्घटनाएं यही कहती है कि अब तो समस्या का निराकरण करो। कुछ लोगों को बदलना होगा तो कुछ यातायात पुलिस को भी अपनी पुरानी आदतें छोडऩी होगी। यह भी कम महत्त्व वाला मुद्दा नहीं है क्योंकि इससे भी सीधे-सीधे मानव जीवन जुड़ा है।
हर सांस हर शब्द में बोलता है मानव
मरहूम कवि और शायर अजीज आजाद की जयंती पर दो दिन बीकानेर में साहित्यधारा अविरल बही। उसने सबको डुबोया। मेरे घर में यदि सांपों का बसेरा होगा, ये हिंसा ही सही उनको कुचलना होगा, जैसी जांबाज भावना वाले इस शायर ने बीकानेर की माटी की गंध को अपनी रचनाओं में सुशोभित किया। यहां के लोगों की तहजीब, सलीके और संवेदना के तारों को अपनी रचनाओं में पिरोया। मेरा दावा है कि सारा जहर उतर जाएगा, तुम दो दिन मेरे शहर में ठहर कर तो देखो। सद्भाव, भाईचारे व इंसानियत के उंचे मानदंडों को भाव देने वाले इस शायर की याद दिलों में आज भी रची बसी है। हरीश भादानी, मो. सदीक और अजीज आजाद, साहित्य की इस त्रिवेणी के मन और रचनाकर्म में यहां का इंसान और इंसानियत ही बसी थी। उनकी याद जहां गौरवान्वित करती हैं वहीं बिछुडऩे के दर्द का अहसास भी कराती है।

1 टिप्पणी:

  1. जरूर आउंगा. वैसे मैं पिछले पांच सालो में तीन बार आ चुका हूँ. अब आपके निमंत्रण पर जरूर आउंगा.
    WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

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