संदूक से वो खत तो निकालो यारों...
करोड़ों की सरकारी नजूल संपतियां को लेकर फाइलों का कारोबार अर्से से चल रहा है पर सम्पतियों का निस्तारण आज भी नहीं हुआ। जनता की गाढ़ी कमाई वाली ये इमारतें ग्रामीण इलाकों में है जिनको बेचकर करोड़ों कमाए जा सकते हैं और साथ में संभावित दुघटनाओं को भी रोका जा सकता है। सरकार में कहते हैं फाइल नौ दिन में अढ़ाई कोस चलती है जिसके कारण ही वांछित को न तो लाभ मिल पाता है और न ही शहर, प्रदेश का भला होता है। अनेक सरकारी योजनाएं इस कारण फलीभूत नहीं होती क्योंकि उनकी जानकारी आम आदमी तक को देने की जहमत सरकारी अमला नहीं उठाता। समाज कल्याण विभाग की योजनाएं तो केवल फाइलों में ही दम तोड़ देती है। सानिवि एक ऐसा महकमा है जहां जन संपतियां दर-दर की ठोकरें खाती है। इस विभाग का एक हिस्सा ऐसा है जहां मशीनें है और उनका किराया निजी मशीनों से कम है फिर भी ठेकेदार उनका उपयोग नहीं करते। लाखों की तनख्वाह वाले कार्मिक यहां काम करते हैं पर आमदनी सैकड़ों में भी नहीं होती। यह जिजीविषा की कमी का नतीजा ही है। शिक्षा विभाग महीनों से अपनी बेकार पड़ी सम्पतियों को बेचने की बात ही कर रहा है। नहर, जलदाय, वन आदि विभागों में भी बेकार पड़ी सम्पतियों की यही हालत है। जितनी तीव्रता वेतनमान पाने, अवकाश पाने में होती है उससे आधी ही यदि इन कामों को करने में हो जाए तो जनता के अरबों रुपए विकास में लग सकते है। कमजोर कानून और अधिकारियों पर लगाम न होने के कारण ही ऐसे हालात बने हैं। सुधार की कहीं से तो शुरुआत करनी ही होगी, किसी न किसी की जिम्मेवारी तय करनी पड़ेगी ताकि दंड विधान जो बने हुए हैं उनको लागू किया जा सके। जनता फरियादी की तरह अभी तो देख रही है जिस दिन उसने नजरें बदल ली तो राज और काज दोनों को भारी पड़ेगा। स्व। दुष्यंत का शेर हालात का सही बयां करता है- आज सीवन को उधेड़ो तो जरा देखेंगे, आज संदूक से वो खत तो निकालो यारों। रहनुमाओं की अदाओं पे फिदा है दुनिया, इस बहकती दुनिया को संभालो यारों।
नहर कैसे बुझाएगी धरती व लोगों की प्यास
दुनिया की सबसे बड़ी मानव निर्मित परियोजना इंदिरा गांधी नहर का ध्येय थार मरूस्थल की प्यास बुझाना था पर अविवेकी निर्णयों से अब उस पर संकट खड़ा होने लग गया है। हर साल की तरह इस बार भी बीएफसी में नहर अभियंताओं व कार्मिकों के पद बड़ी संख्या में तोड़े गए हैं। नहर बन गई और सिंचित क्षेत्र खोलकर लोगों की उम्मीदें भी जगा दी गई। दूसरी तरफ पंजाब से पानी कम मिल रहा है जाहिर है इससे पानी के लिए किसानों में मारामारी है। पानी चोरी के जहां मुकदमें अधिक हो रहे हैं वहीं टेल के किसान की जमीन तो बिल्कुल प्यासी रह रही है। इस विषम स्थिति में सही जल वितरण कोई कर सकता है तो वो नहरकर्मी है पर दुर्भाग्य है कि हर बार इनकी संख्या ही कम की जा रही है। पूंजीवादी व्यवस्था की तरह असंतुलन बनाया जा रहा है। नहर को बजट कम और कर्मचारी भी कम, कैसे बुझेगी धरती और लोगों की प्यास।
केवल छुट्टी की परवाह
कड़ाके की ठंड ने लोगों का जीना मुहाल किया तो मजबूरी में स्कूल जाने वाले बच्चों की छुट्टियाँ की गई। छुट्टी के शौकीन शिक्षकों को यह कैसे सहन होता उन्होंने भी आवाज उठा अपने लिए यह लाभ ले लिया। कोई इनसे पूछे कि बच्चे तो रोज स्कूल आते हैं और पढ़ते भी हैं,वे ऐसा करते हैं क्या? कोई नेता मरे तो सरकारी कर्मचारी का दूसरे से पहला सवाल होता है, छुट्टी रहेगी क्या? सोचना होगा उनको जो ऐसा करते हैं।
शुक्रवार, 15 जनवरी 2010
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punjab se kootnitik tareeke se nipatnaa hogaa, tabhi punjab hame (rajasthan) ko puraa paani degaa.
जवाब देंहटाएंab yeh to c.m.saab (gehlot ji) hi bataa sakte hain ki-"way punjab se kis kootnitik tareeke se or kaise nipat paate hain??
thanks.
(bahut badhiyaa likhaa aapne, i liked it.)
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