अबकी बारी सरकार की
नगर निगम साधारण सभा की दूसरी बैठक भी बुधवार को बिना किसी शोरगुल के विकास के नाम पर एक राय से हो गई। पहली बैठक की तरह इसमें भी विपक्षी पार्षद दल ने मेयर को अपना सहयोग विकास के नाम पर दिया। आमतौर पर समितियों के गठन में महत्त्वाकांक्षी पार्षद अपने नाम की चाह को लेकर कभी एक राय नहीं बनाते। प्रदेश में बीकानेर एकमात्र ऐसा उदाहरण है जहां निगम के निर्णय इस बार सर्वसम्मति से हो रहे हैं। भाजपा पार्षद उम्मेदसिंह व मेयर भवानीशंकर शर्मा की बात अपने में कई मायने रखती है। इन दोनों का कहना था कि सभी पार्षद जनादेश का सम्मान कर एक राय बना रहे हैं जो स्वस्थ लोकतन्त्र का संकेत है। बीकानेर की जनता, दोनों दलों के पार्षद व निगम के कर्मचारियों ने पहल कर विकास के प्रति अपना समर्पण दिखा दिया, अब बारी सरकार की है। सारी बात उसके पाले में है।
निगम की आर्थिक दशा बदतर है जिससे विकास रुका हुआ है। केन्द्र प्रवर्तित योजनाओं की धनराशि के उपयोग के लिए निगम ने ऋण लेने का साहसी निर्णय किया जिसमें विपक्ष ने भी सहमति व प्रतिबद्धता जताई। ये बात अपनी जगह है पर इस निर्णय का सरकार को भी सम्मान करना चाहिए। राज्यों, समाजों, क्षेत्रीय जरूरतों को वरीयता देते हुए विशेष आर्थिक पैकेज देने की परंपरा देश के लोकतन्त्र का हिस्सा है उसका उपयोग राज्य सरकार को भी करना चाहिए। जिन निगमों की दशा खराब है उनको एकबारगी विशेष पैकेज देकर आर्थिक रूप से संबल किया जाना चाहिए ताकि वे बाद का रास्ता अपने बूते तय कर सकें। सरकार ने यदि अपनेपन व बड़प्पन का भाव नहीं दिखाया तो बीकानेर में बनी एकता तीखे तेवर भी दिखा सकती है। शहर के विकास पर जब आमजन एक हो जाए तो सरकारों को संभल जाना चाहिए और जन अपेक्षाओं को नज़रअन्दाज करने की वृत्ती भी छोड़नी चाहिए। निगम पार्षदों ने एक राय बना अपनी चाह दर्शा दी है अब उसे अमलीजामा पहनाने की जिम्मेवारी सरकार की है।
एक सपना तो हुआ पूरा
बीकानेर में वेटेरनरी विवि खोलने की घोषणा को अमलीजामा पहनाने की प्रक्रिया शुरू होना यहां के लिए एक बड़ी सौगात है। इस विवि का सपना लोगों ने एक दशक पहले देखा था क्योंकि कृषि के बाद यहां का जनजीवन सबसे ज्यादा पशुपालन पर केन्द्रित है। कैबीनेट ने इस पर मुहर लगा इस संभाग का एक सपना पूरा किया है जिसके सार्थक परिणाम प्रदेश के पशुपालकों को मिलेंगे। बस ख्याल इस बात का रखा जाना आवश्यक है कि विवि को साधनों की कमी नहीं होनी चाहिए। महाराजा गंगासिंह विवि की तरह साधनो की तंगी न रखे सरकार। इस विवि के खुलने की बात के साथ यहां की जनता की एक टीस अभी बाकी है जो उसे साल रही है, वह है केन्द्रीय विवि की। व्यास समिति की सिफारिश के अनुसार उसकी स्थापना यहां का बड़ा सपना है जिससे छेड़छाड़ सहन नहीं होगी।
नारे तो करें सार्थक
लंबी प्रतीक्षा के बाद आखिरकार प्रशासन शहरों के संग अभियान आरम्भ हुआ मगर लालफीताशाही ने सारे अरमानों पर पानी फेर दिया। न नियमन हो रहा है, न निर्माण की स्वीकृति, न अधिकारी बात सुन रहे हैं न मिल रहे हैं। केवल खानापूर्ति कर हर दिन की प्रगति रिपोर्ट जारी कर दी जाती है। शिविर के नाम पर जो काम हो रहे हैं वे तो आम दिनों में भी आसानी से हो सकते हैं। सरकार अपने कारिन्दों की रिपोर्ट पर भरोसा करने के बजाय ग्राउण्ड रिपोर्ट का पता करे तो उसे अभियान शुरू करने के निर्णय पर पछतावे के अलावा कुछ नहीं मिलेगा।
गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अरे क्या बात कर दी आपने?????
जवाब देंहटाएंनारे तो लगाने के लिए होते हैं???
अगर नारे सार्थक होने लग जायेंगे तो उन्हें नारा कौन कहेगा??????
thanks.
www.chanderksoni.blogspot.com
badhiyaa likhaa aapne, i liked it.
जवाब देंहटाएंthanks.
www.chanderksoni.blogspot.com