गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

नरेगा से आगे भी है पंचायती राज
शहर के बाद गांव की सरकार भी बन गई। जीवन से जुड़े मुद्दों को दरकिनार करके लोगों ने एक बार राज की कड़ी से कड़ी जोड़ी है। लोक सभा से लेकर अब तक ग्रामीण मतदाता को लुभाने के लिए नरेगा का लाभ उठाया गया है पर गांव का विकास इसी तक सीमित नहीं है। नरेगा से आगे भी जाने की जरूरत है।
गांवों में शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन व संचार का वो विकास नहीं हो सका है जिसकी हर ग्रामीण को दरकार है। स्कूलों में बच्चे रहते हैं पर शिक्षक नहीं, बीमारी हरेक को आती है पर भागकर शहर आना पड़ता है। कई गांव ऐसे है जहां दिन में एक बार बस जाती है और एक बार ही वापस शहर की तरफ आती है। सूचना तन्त्र तो पूरी तरह गड़बड़ाया हुआ है। सामारिक दृष्टि से बीकानेर अति संवेदनशील है जहां ग्रामीण सेना के साथी बनने का काम करते हैं। इसलिए बीएडीपी की यहां बड़ी जरूरत है जिसके लिए विशेष योजना बननी समय की आवश्यकता है। गांव की सरकार से इस बार वहां के लोगों ने आस अधिक लगाई है इसलिए उसे केवल नरेगा तक ही सीमित मान लिया गया तो असन्तोष को कोई रोक नहीं सकेगा।
इसके अलावा ग्रामीण सबसे अधिक परेशान भ्रष्टाचार से है, हर कहीं उसे इसका शिकार होना पड़ता है। नरेगा के भ्रष्टाचार की कहानी तो अब सार्वजनिक होने लगी है। कालिख से निकलकर रोजगार की गारंटी पूरी करने वाला मुखिया ही आशाओं को पूरा कर सकेगा। आधी से अधिक आबादी गांवों की है इसलिए इस सरकार की जिम्मेवारी भी ज्यादा है। पंचायती राज को शिक्षा के अधिक अधिकार इसलिए दिए गए ताकि साक्षरता का प्रतिशत बढ़े पर इतिहास गवाह है कि गांव की सरकार ने इसका पूरा लाभ नहीं उठाया। राजनीतिक आधार पर तबादले के डण्डे से शिक्षकों को प्रताड़ित करने का ही काम किया गया। हालत यह हो गई कि शिक्षक अब गांवों में लगने से कतराने लगे हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य को पूरी तरह राजनीति से मुक्त रखने का सरकार का दायित्व है क्योंकि इनका सीधा जुड़ाव जनता से है, इस परिपाटी को सुधारने की आस इस बार जगी है जिसे मुखियाओं को पूरा
करना चाहिए।
बीकानेर में बनी गांव की सरकार ने इस बार कई राजनीतिक उलटफेर किए हैं जिसको इस अर्थ में लिया जाना चाहिए कि कुछ नया चाहा गया है, यदि इसे पहचाना नहीं गया तो यही वोटर आने वाले समय में दूसरा रंग दिखा सकता है। एक तरफ जहां गांव की सरकार ने नई संभावनाओं के द्वार खोले हैं वहीं कांटों का ताज भी पहनाया है, इसके बीच रास्ता कैसे निकलता है यह देखने की बात है।
चलेगा क्या गोडा एक्ट?
पंचायत राज में जहां सरकार के बनाए अपने एक्ट हैं और उनसे काम भी चलता है मगर बीकानेर में एक मोखिक एक्ट भी है, गोडा एक्ट। इस एक्ट के बारे में वे ही मुखिया जानते हैं जो गांव की सरकार से वर्षों से जुड़े है। इस बार जब उनसे इस मौखिक एक्ट के बारे में पूछा गया तो वे बोले, भाया जद सरकारी बाबू अर अफसर काबू नहीं आवे- काम करण में आनाकानी करे तो फेर गोडा एक्ट रो उपयोग तो करणों ही पड़े। जनता री भलाई खातर ओ ऐकट तो हमेशा ही चालसी-चालणो भी चाइजे। जय हो पंचायत राज री।
म्हारा बेली समपटपाट .......
राजस्थानी कवि मोहम्मद ने अर्से पहले कविता लिखी थी- म्हारा बेली समपटपाट, म्हें थनै चाटूं तूं म्हने चाट। प्रशासन शहरों के संग अभियान में आजकल वैसा ही हो रहा है। सरकार व उसका अमला एक दूसरे को अभियान की प्रगति के कागज देकर वाह-वाह, वाह कर रहे हैं। आम आदमी अब तक तो इस अभियान से जुड़ ही नहीं पाया है। केवल नगर निगम तक अभियान को सीमित कर पूरा दिन बिता दिया जाता है। विधवा पेंशन, वृद्धावस्था पेंशन, बिजली कनेक्शन आदि के काम तो सुने ही नहीं जाते। नियमन की बातें तो वर्षों से शिविरों के बजाय बन्द कमरों में ही होती है। जिस ध्येय से यह अभियान आरम्भ किया गया वो तो अंश मात्र भी पूरा होता नहीं दिखता। इस अभियान की समीक्षा समय की मांग है नहीं तो यह भी केवल सरकारी नारा बनकर रह जाएगा जिसकी केवल इबारतें ही दिखेगी धरातल पर तो नजारा कुछ अलग ही होगा।

2 टिप्‍पणियां:

  1. main jyaadaa kuch to nahi jaantaa. lekiin, itnaa jaroor jaantaa hoon ki-"NREGA filhaal congress ke liye sanjeevni-bahut badaa sahaaraa bani hui hain."
    thanks.
    www.chanderksoni.blogspot.com

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  2. regarding madhu bhai saab , aaj aap ka blog dekhne ka shoubhagya prapt hua, accha laga.
    aabhar aap ka.
    sunil gajjani

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